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मन पक्का कर मर्जी की राह पर चलो

राजस्थान में जन्मे नितिन नोहरिया दूसरे गैर-अमेरिकन और पहले भारतवंशी शिक्षाविद हैजिन्हें दुनिया के प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूलएमआईटी का निर्माण सिरमौर बनाया गया।

आईआईटी फिर मैनेजमेंट की पढ़ाई

जब नितिन आठवीं कक्षा में थेतब एक दिन उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें पल्स् एस.बक की किताब 'द गुड अर्थदी और कहातुम्हें पाठ्यक्रम के अलावा पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए। इसके बाद नितिन ने एक ही साल में नोबल प्राइज विजेता लेखकों की 20 किताबें पढ़ ली और महसूस किया कि ज्ञान प्राप्ति के लिए न स्कूल चाहिए और न अध्यापक। नई दिल्ली से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने आईआईटी बाॅम्बे में केमिकल इंजीनियरिंग का ग्रेजुएशन कोर्स ज्वाइन किया। इसे भूल बताते हुए उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा हैकेमिकल इंजीनियरिंग में मुझे रुचि नहीं थी। वे साल मैने बर्बाद कर दिए। आईआईटी के मेरे सहपाठियों  ने ग्रेजुएशन के बाद यूएस में इंजीनियरिंग के मास्टर कोर्स में दाखिला लिया। मैंने इंजीनियरिंग के बजाय मैनेजमेंट की पढ़ाई करना चाहा तो पिताजी ने कहावह करो जो अच्छा लगे। ध्यान रखना कि जो भी करो वह समाज के लिए भी अच्छा  हो |

उद्योग के बजाय अध्यापन चुना

नितिन ने एमआईटी के सोलन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में दाखिला लिया। वहां के शैक्षणिक माहौल ने उनकी सोच को बदल डाला। उनके अनुसार भारत में छात्र प्रोफेसर को चैलेंज नहीं कर सकतापर अमेरिका में यह छूट है। एमआईटी के पहले साल के बाद नितिन ने आयरलैंड की एक कंपनी से संपर्क कियाजो इलेक्ट्रिक टेप्स बनाती थी। नितिन चाहते थेवह भी भारत में यह टिप्स बनाएंपर दूसरे साल में उन्होंने तय किया कि वे उद्योगपति नहींअध्यापक बनेंगे। मैनेजमेंट में पीएचडी की डिग्री मिलने के बाद नितिन यह हॉवर्ड बिजनेस स्कूल को ज्वाइन कर लिया। 22 साल अवार्ड विनर प्रोफेसर रहने के बाद 2010 में उन्हें हॉवर्ड बिजनेस स्कूल का डीन बना दिया गया। 6.62 लाख डाॅलर सालाना पेपैकेज वाले दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल के डीन नितिन नोहरिया लीडरशिप व बिहेवियरल साइंस के अध्यापक हैं। 

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