कड़ी मेहनत से ही फलते हैं सफलता के बीज
कड़ी मेहनत से ही फलते हैं सफलता के बीज
मेहनत और रणनीति का संयोजन
आंध्रप्रदेश में कावेरी नदी से सिंचित खेती होती है, इसी को ध्यान में रखकर 1986 में भास्कर राव ने कंपनी का नाम बदला कावेरी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड। उन दिनों बीज बेचने के लिए उन्होंने 1 साल में 3 लाख किलोमीटर बाइक दौड़ाई। उन्हीं दिनों भास्कर राव ने जर्मप्लाज्म एकत्रित करके न्यू हाइब्रिड वैरायटी की शुरुआत की। कावेरी सीड्स की पहली हाइब्रिड मक्का वैरायटी थी कावेरी-517। इसे किसानों का ऐसा जबरदस्त रिस्पांस मिला कि कभी खरीफ सीजन में कंपनी 10 से 15 ट्रक कावेरी 517 बेचती थी, जो आज 300 ट्रक ( 3000 टन ) हो गई है। कावेरी सीड्स आज विभिन्न फसलों के 75 से ज्यादा वैरायटी के हाइब्रिड सीड्स बनाती व बेचती है। इसके साथ ही हाइब्रिड मक्का और चावल बीज मार्केट में कावेरी सीड्स का क्रम तीसरा है। फोर्ब्स ने एशिया बेस्ड अंडर बिलियनेयर ( छोटे व मध्यम आकार की 200 कंपनियों ) की सूची में कावेरी सीड्स को लगातार तीसरे वर्ष शामिल किया है।
रिसर्च से मिलती है नई ऊर्जा
भास्करराव जानते हैं कि शोध के बिना हाइब्रिड सीड्स मार्केट में लंबी पारी नहीं खेल सकते। इसलिए उन्होंने 600 एकड़ का रिसर्च फार्म विकसित किया है। कावेरी सीड्स के 1100 कर्मचारियों में 50 से ज्यादा वैज्ञानिक कृषि टेक्नीशियंस है। कावेरी सीड्स कि अपनी बायोटेक्नोलॉजी लैब भी है। कंपनी के देश में 15 हजार से ज्यादा डीलर है। कंपनी मक्का सीड बांग्लादेश को निर्यात भी करती है।
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